जिन्होंने छत्तीसगढ़ को अपना सब कुछ दे दिया और छत्तीसगढ़ के लिए ही मर मिटे…


ऐसे महान ज्ञानमार्गी धर्म प्रचारक बहु प्रतिभा के धनी संत,कवि,कुशल राजनीतिज्ञ आजीवन ब्रम्हचारी ब्रम्हलीन संत जिन्होंने छत्तीसगढ़ को अपना सब कुछ दे दिया और छत्तीसगढ़ के लिए ही मर मिटे, जिन्होंने प्रभु श्री राम लला को छत्तीसगढ़ का भांचा होने का बोध कराया, क्यों ना ऐसे दिव्य संत के नाम से पचपेड़ी नाका का नामकरण “संत पवन दीवान जी चौक” के नाम से किया जाये….”पत्रकार रानुप्रिया”
पवन दीवान उन व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ियों में स्वाभिमान जगाने का काम किया था, जिन्होंने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन किया था, छत्तीसगढ़ी भाषा को भागवत कथा में शामिल कर उसे जन-जन में प्रचार-प्रसार करने और मातृभाषा के प्रति सम्मान जगाने का काम किया था, हर मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी, जो एक सफल कवि, भागवताचार्य, खिलाड़ी और राजनेता के तौर जाने और माने गए, एक पंक्ति में जीवन के मूल्य को समझा दिया था- “तहूँ होबे राख… महूँ होहू राख…” जिनके लिए सन 1977 में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है।
अतीक जल्दी कइसे भूला गेव मोला भाई मान..😔
मोर पुण्यतिथि के तारीख तुमन ला याद होही ..💞 बड़ मान-सम्मान प्रेम देवत रहेव,कोनो बेर बखत में कमी नइ करेव .. ए बेरा मोर सुरता तमन मोला कइसे नइ करेव..??😔




अब मैं तुमहर दुनिया से चल देवं भाई.. पर मोर आशीर्वाद सदैव तुमहर मन संग रही.. बारी तुमहर मन के हावे.…
सुने हवों पचपेड़ी नाका के नाम ला बदलत हावो करके.. मोला याद हावे ऐही पचपेड़ी नाका ला पार कर करके पृथक छत्तीसगढ़ बर बड़ लड़ाई करे रहेन….
राजी-खुशी में रहो भाई छत्तीसगढ़ ला अब बने राज करके चलाओ….
अऊ पुरखा के सुरता मंन ला झन भूलाहु….
(ब्रह्मलीन संत कवि पवन दीवान)

कौन है आचार्य ब्रम्हलीन संत पवन दीवान??
पवन दीवान का जन्म 1 जनवरी 1945 को राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई। उनके पिता का नाम सुखरामधर दीवान जो कि शिक्षक थे। वहीं माता का नाम किर्ती देवी दीवान था। ननिहाल आरंग के पास छटेरा गाँव था। उन्होंने स्कूली शिक्षा किरवई और राजिम से पूरी की। जबकि उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय और रविशकंर शुक्ल वि.वि. रायपुर से प्राप्त की थी। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में एमए की पढ़ाई की थी।
पवन दीवान की पहचान आध्यत्मिक संत, विद्धान, भागवत प्रवचनकर्ता, हिंदी और छत्तीसगढ़ के लोक प्रिय कवि के रूप में जानी जाती है, उन्होंने राजिम से महानदी, अंतरिक्ष, बिम्ब नाम से पत्रियाओं का संपादन किया. पवन दीवान संस्कृत विद्यापीठ राजिम के प्राचार्य भी रहे. खूबचंद बघेल की छत्तीसगढ़ भातृसंघ के अध्यक्ष रहे…
अध्ययन काल के दौरान पवन दीवान की रुचि खेल में भी रही। फ़ुटबॉल के साथ बॉलीबॉल में वे स्कूल के दिनों में उत्कृष्ट खिलाड़ी रहे। इस दौरान ही उन्होंने कविता लेखन की शुरुआत भी कर दी थी। धीरे-धीरे वे एक मंच के एक धाकड़ कवि बन चुके थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनों में ही कविताएं लिखी। उनकी कुछ कविताएं जनता के बीच इतनी चर्चित हुई कि वे जहाँ भी भागवत कथा को वाचन को जाते लोग उनसे कविता सुनाने की मांग अवश्य करते। इन कविताओं में ‘राख’ और ‘ये पइत पड़त हावय जाड़’ प्रमुख रहे। वहीं कवि सम्मेलनों में उनकी जो कविता सबसे चर्चित रही उसमें एक थी ‘मेरे गाँव की लड़की चंदा उसका नाम था’ शामिल है।
दीक्षा:- अध्ययनकाल के समय ही पवन दीवान में वैराग्य की भावना बलवती हो गई थी। 21 वर्ष की आयु में हिमालय की तरायु में जाकर अंततः उन्होंने स्वामी भजनानंदजी महराज से दीक्षा लेकर सन्यास धारण कर लिया और भी पवन दीवान से अमृतानंद बन गए। इसके बाद वे आजीवन सन्यास में रहे और गाँव-गाँव जाकर भागवत कथा का वाचन करने लगे।

राजनीति:- भागवत कथा वाचन, कवि सम्मेलनों से राजिम सहित पूरे अँचल में पवन दीवान प्रसिद्ध हो चुके हैं। उनके शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ते ही जा रही थी। राजनीति दल के लोगों से उनका मिलना-जुलना जारी था और उनकी यही बढ़ती हुई लोकप्रियता एक दिन उन्हें राजनीति में ले आई। राजनीति में उनका प्रवेश हुआ जनता पार्टी के साथ। 1975 में आपात काल के बाद सन 1977 में जनता पार्टी से राजिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। एक युवा संत कवि के सामने तब कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामाचरण शुक्ल कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे।

युवा संत कवि पवन दीवान ने श्यामाचरण शुक्ल को हराकर सबको चौंका दिया था। तब उस दौर में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है। श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेता को हराने का इनाम पवन दीवान को मिला और अविभाजित मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे। इसके बाद वे कांग्रेस के साथ आ गए और फिर पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने तक कांग्रेस में रहे।
बाद में पुनः भाजपा के आमंत्रण से राजनीती के घर वापसी कर गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर भी रहे, ब्रम्हलीन के पहले संत जी काफी लम्बे समय तक गृह निवास किरवई आश्रम में सादगी पूर्वक जीवन निर्वहन कर रहे थे…

शेष अगले अंक में…
पचपेड़ी नाका का नामकरण अगर नवीनीकरण किया जा रहा हो तो छत्तीसगढ़ के बहु प्रतिभा के धनि ब्रम्हलीन संत पवन दीवान जी के नाम से किया जाये… पत्रकार-रानुप्रिया
मेरा भी दावा आपत्ति स्वीकार की जाए..
पचपेड़ी नाका का नवीन नामकरण किया जा रहा हो तो.. पृथक छत्तीसगढ़ के प्रथम शंखनादक.. ब्रह्मलीन संत पवन दीवान जी राजिम के नाम से किया जाए.. उनके त्याग, तपस्या, बलिदान की कहानी किसी से छिपी हुई नहीं है.. जिनमें काफी प्रयास उपरांत.. आज पृथक छत्तीसगढ़ का उपहार स्वरूप सौगात हमें मिला है.. जिन्होंने माता कौशल्या की मायका यानी प्रभु श्री राम लला की ननिहाल..छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र का बोध कराया.
दुर्भाग्य उनकी एक भी प्रतीक स्मृति पूरे राजधानी में कहीं दिखाई नहीं देती.. इस हेतु पचपेड़ी नाका का नामकरण ब्रह्मलीन संत कवि पवन दीवान जी के नाम से किया जाए…
पत्रकार-रानुप्रिया राजिम, पता- मीडिया हॉउस राजिम, जिला गरियाबंद ४९३८८५
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