नवापारा श्री नीलकंठ मंदिर बढाई पारा में शिव पुराण कथा के चौथे दिन पंडित जयश्रवण महाराज ने प्रवचन करते हुए बताया – देवो के देव महादेव संसार के कष्ट को दूर करने समुद्र मंथन से निकले विष को अपने कंठ में धारण किया तब से संसार उसे नीलकंठ के नाम से मानते है…

आज का कथा द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं चढ़ोत्रि…. समय दोपहर ३ बजे से शाम ६:३० तक

यह भी बताया- नीलकंठ महादेव का श्रावण मास में पूजन अनुष्ठान एवं कथन श्रवण से शिव भक्तो का मनोवांछित कार्य पूर्ण होते है तथा रोग-शोक कलह क्लेश बाधा एवं आकाल मृत्यु से उनकी रक्षा भी होती है तथा इसी शुभ श्रावण मास में नीलकंठ का दर्शन करना एवं शिवलिंग पर बेल पत्र तथा जल चढ़ाकर अभिषेक करना सर्वोत्तम माना गया है…

पत्रकार रानुप्रिया(रायपुर): ब्राह्मणों के लिए नमः शिवाय का उच्चारण एवं अन्य व स्त्रियों को शिवाय नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए ब्राह्मण स्त्री नमः शिवाय का जाप करें, ब्राह्मण को चाहिए कि वह प्रतिदिन प्रातः काल 1008 बार गायत्री का जाप करें, ओम इस मंत्र का प्रतिदिन तीर्थ क्षेत्र में मनुष्य को स्नान, दान, जप आदि करना चाहिए। पुण्य क्षेत्र में पाप कर्म और अधिक बढ जाता है इसलिए पुण्य क्षेत्र में थोड़ा सा भी पाप ना करें, नदी तालाब के किनारे, वन में या शिवालय में या किसी पवित्र स्थान पर पूजा करना चाहिए। भगवान शिव के नैवेद्य को देख लेने मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं, उसको खा लेने पर तो करोड़ पुण्य अपने भीतर आते हैं लेकिन जो वस्तु लिंग स्पर्श से रहित है अर्थात जिस वस्तु को अलग रखकर शिवजी को निवेदित किया जाता है, लिंग के ऊपर चढ़ना नहीं जाता उसे अत्यंत पवित्र जानना चाहिए, ललाट में त्रिपुंड धारण करना चाहिए, साथ ही शिव पार्वती की प्रसन्नता के लिए रुद्राक्ष के फलों को जो आवले के फल के बराबर हो वह श्रेष्ठ रुद्राक्ष है। महाराज जी ने रुद्राक्ष के प्रकारों का वर्णन करते हुए बताया की एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात शिव का स्वरूप है, दो मुख वाला रुद्राक्ष संपूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है, इस तरह अलग-अलग मुख वाले रुद्राक्ष के अलग-अलग फल बताते हुए 14 मुख वाला रुद्राक्ष परम शिव स्वरूप है कथा को आगे बढ़ाते हुए महाराज जी ने नारद जी का भगवान विष्णु से उनका रूप मांगना, भगवान का अपने रूप के साथ उन्हें वानर का मुंह देना, कन्या का भगवान को वरन करन, कपित होकर नारद का शिव गणों को शाप देना, नारद जी का भगवान विष्णु पर क्रोधित होना, शाप देना फिर माया के दूर हो जाने पर पश्चाताप पूर्वक भगवान के चरणों में गिरना, शुद्धि का उपाय पूछना, तथा भगवान विष्णु का उन्हें समझना एवं शिव के भजन का उपदेश देने की कथा का वर्णन किया ।
आज श्रोताओं से मंदिर परिसर भरा हुआ था, श्रोताओं में प्रमुख रूप से जयकुमार गुप्ता, अजय गुप्ता, दिलीप गुप्ता, अखिलेश गुप्ता, द्वारिका चक्रधारी, बी आर वर्मा, वासुदेव पांडेय रमेश साहनी, महेश साहनी, रमाकांत महाराज कन्हैया प्रसाद तिवारी महाराज, मनीष शर्मा, कृष्णा और शिवा शर्मा, अखिलेश गुप्ता, शिवम गुप्ता, शिवांक गुप्ता, पंडित सोहन मिश्रा, सत्येंद्र दुबे, गजानंद यादव, पुरुषोत्तम कंसारी ईशा गुप्ताएवं प्रमुख यजमान के रूप में श्याम किशोर गुप्ता एवं गीता गुप्ता एवं सैकड़ो की संख्या में माताएं कथा श्रवण का लाभ ले रही है। महाराज जी की कथा अत्यंत ज्ञान पूर्ण, रोचक एवं विद्वतापूर्ण है।