
भगवान जगन्नाथ के 15 दिनों तक बीमार होने की परंपरा ‘अनासर’ कहलाती है, और इसके पीछे कई मान्यताएं और कारण हैं:–

अत्यधिक स्नान:
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को ‘स्नान यात्रा’ के दौरान अत्यधिक स्नान कराया जाता है, जिसके कारण उन्हें बुखार आ जाता है और वे बीमार पड़ जाते हैं.
एकांतवास और उपचार:
इस 15 दिनों की अवधि में भगवान एकांतवास में चले जाते हैं, जिसे ‘अनासर’ कहा जाता है. इस दौरान उनके पास चिकित्सकों को छोड़कर किसी भक्त को जाने की अनुमति नहीं होती है, और उनका विधिवत उपचार किया जाता है.
रथ यात्रा से पूर्व:
यह अनासर की अवधि रथ यात्रा से ठीक 15 दिन पहले होती है, जिसके बाद भगवान स्वस्थ होकर भक्तों को दर्शन देते हैं और रथ यात्रा के लिए निकलते हैं.
भगवान यात्रा से पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा के स्नान के बाद बीमार होने के कारण 15 दिन के लिए एकांतवास में चले जाते हैं, इस दौरान भगवान भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं, एकांतवास के दौरान भगवान को तरह-तरह की औषधि का लेप और काढ़ा पिलाकर स्वस्थ किया जाता है…
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा 27 जून से शुरू होने वाली है. यह रथ यात्रा भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इस रथयात्रा में शामिल होने के लिए भगवान जगन्नाथ के भक्त दुनिया भर से आते हैं. इस साल 27 जून को आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि है और इसी दिन से रथयात्रा शुरू होगी. लेकिन इससे पहले 15 दिन के लिए भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए हैं...

15 दिन का एकांतवास और इलाज
दरअसल, रथ यात्रा से पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का 108 घड़ों के सुगंधित जल से स्नान कराया जाता है. इस रस्म को स्नान यात्रा कहते हैं. स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं, उन्हें बुखार हो जाता है. जिससे वे एकांतवास में चले जाते हैं. इस दौरान किसी भी भक्त को उनके पास जाने की अनुमति नहीं होती है. साथ ही उनका इलाज चलता है.

रोचक है भगवान के बीमार पड़ने की कहानी
भगवान जगन्नाथ के बीमार पड़ने के पीछे एक रोचक कहानी है, किसी समय में माधवदास नाम के व्यक्ति थे, वे बेहद सीधे-सादे थे, उनके परिवार में केवल पत्नी और वे ही बचे थे, जब पत्नी बीमार हुई और उनका अंतिम समय आया तो उन्होंने पत्नी से कहा- “अब जब तुम भी मुझे छोड़कर जा रही हो तो मैं किस के भरोसे रहूंगा? कौन मुझसे प्रेम करेगा.?” यह कहकर माधवदास रोने लगे…

भगवान की शरण में जाओ
तब माधवदास की पत्नी ने कहा कि वे पुरी में भगवान जगन्नाथ की शरण में चले जाएं, वही उनसे प्रेम करेंगे और उनका ध्यान रखेंगे, माधवदास की पत्नी भगवान जगन्नाथ की परम भक्त थीं. जब माधवदास की पत्नी की मृत्यु हो गई तो वे पुरी चले आए.
प्रसाद लेने से किया इनकार
माधवदास जब पुरी पहुंचे तो मंदिर के सामने एक पेड़ की छांव में बैठ गए. वहां से एक पुजारी गुजर रहे थे तो उन्होंने माधवदास को प्रसाद दिया, लेकिन माधवदास ने प्रसाद लेने से इनकार कर दिया और कहा कि भगवान जगन्नाथ स्वयं आकर जब प्रसाद देंगे तभी वे कुछ खाएंगे. लंबा समय गुजर गया लेकिन माधवदास ने भगवान जगन्नाथ के हाथ से ही अन्न-जल ग्रहण करने का हठ नहीं छोड़ा.

खुद भगवान जगन्नाथ हुए प्रकट
भक्त माधवदास की तपस्या देखकर भगवान जगन्नाथ को आना पड़ा और फिर अपने वास्तविक रूप में दर्शन देकर माधवदास को अन्न ग्रहण कराया. इसके बाद माधवदास कई साल तक पुरी में रहे और भगवान जगन्नाथ जी की भक्ति करते रहे. जब उनका अंतिम समय आया और वे बुरी तरह बीमार पड़ गए तो भगवान जगन्नाथ ने स्वयं उनकी सेवा की.

भगवान ने ले ली भक्त की पीड़ा
बीमारी से परेशान माधवदास ने एक दिन दिन भगवान जगन्नाथ से कहा-प्रभु! आप तो जगत के स्वामी हैं, तो क्या आप मेरी बीमारी ठीक नहीं कर सकते?” इसके जवाब में भगवान जगन्नाथ ने कहा- “मित्र माधवदास! मैं तुम्हें मोक्ष देना चाहता हूं. पिछले जन्म के कर्म भोगने के बाद तुम पवित्र हो जाओगे. अभी तुम्हारी बीमारी के बस 15 दिन बचे हैं.” यह सुनकर माधवदास रोने लगे कि मुझे बहुत पीड़ा हो रही है. तब प्रभु जगन्नाथ ने माधवदास की 15 दिनों की बची हुई बीमारी की पीड़ा अपने ऊपर ले ली. माधवदास ठीक हो गए लेकिन प्रभु जगन्नाथ बीमार पड़ गए. इस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी. तब से ही परंपरा है कि भगवान जगन्नाथ ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद से 15 दिन के लिए बीमार होते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं.


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